Monday 28 April 2014

आज सोचा है आसमां में उड़ने को



आज सोचा है आसमां में उड़ने को
आज सोचा है अपने मन की करने को

गुजार दिया जीवन सबकी बात सुन सुन कर
आज सोचा है अपनी बात कहने को

बन गए मशीन जैसे ऑफिस के डिब्बे में रह रह कर
दिखने लगे उर्म से ज्यादा ग्रामीण सेवा के धक्के खा खा कर
आज सोचा है फिर से युवा बनने को


सब काम करवा के कहते हैं कि आखिर तुमने किया क्या है
मेरे लिखे में कहते हैं कि इसमें नया क्या है
आज सोचा है सबको जवाब देने को





मीनाक्षी-------------------------29-04-14
© सर्वाधिकार सुरक्षित



सीख बच्चों से



सीख बच्चों से

एक रात मन में भरी थी टेंशन
भागी हुई थी नींद
विचारों का चल रहा था मेला
गुस्सा भी बन बैठा ढीठ

उठ कर बैठ के देखा मेरे सो रहे थे लाल
उनके चेहरे,मेरे चेहरे में फर्क था बड़ा कमाल
तभी कलम चली मीनाक्षी की
लिख डाला यही धमाल

क्यों बच्चे लगते हैं सुंदर
बिन मेकअप बिन चमचम के
लीपा-थोपी कर लें हम जितनी
लगते फिर भी हम बेरंग से
किंडर जवाए झूलों से ही
स्वर्ग की खुशी पाए बच्चे
हम चाहे महल, करोड़ कमा ले
रह न पाए खुद से सच्चे


जितना मर्जी लड़े, ये आपस में
पल में हंसने गाने लगते
हम तो नेगेटिव बातों से ही
अपने मन को भरते जाते
न द्वेष, न जलन इनके दिल में
न कोई है कम्पीटीशन
जीवन की छोटी-छोटी बातों में भी
ढूंढ लेते है ये फन

हम क्यों आखिर बड़े हो जाते
हम क्यों बच्चों जैसे नहीं बन जाते
हम क्या सिखाएगें इनको
इनसे सीखो सीख
कॉपी कर लो इनकी बातें
तो नहीं मांगोंगे खुशियों की भीख
इनकी प्यारी मासूमियम को  निहार निहार कर
अब सोनू की मैं करु तैयारी
अगर आप भी सहमत हैं इससे, तो मेहनत मेरी बेकार न जाए सारी----------------------मीनाक्षी 25-04-14
© सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday 26 April 2014

april 2014


    जब से सुना है मैं लिखती हूं अच्छा
    हर पल अब सुनाने की रहे मुझको इच्छा
    सोच बनती न किताबों से न ज्ञान के भंडारों से ये तो सीख लेती है अनुभव के नजारो से अब तो ी-वी न रेडियो में आए मुझको मजा
    ढूढती हूं वो अवसर जब जमाने हो जाए आभास
    अपनी लेखनी से बढ़ा दूंगी विचारों की प्यास
    सुनने वालों की कमी तो बन गई एक सजा

    मुझे अपनी पहचान को निकालना है ऑफिस व घर से
    जोड़ना है दिल की धड़कनों को जनता के दिलों से चढ़ गया कुछ कर दिखाने का मुझ पर अब नशा


    मीनाक्षी भसीन

    © सर्वाधिकार सुरक्षित