Thursday 29 May 2014

हम



हर रोज दिन की शुरुआत होते ही मेरे दिमाग में ख्याली प्लाव बनने लगते हैं। अरे भई! कुछ तो हो जाए मेरा---- मतलब जो मुझे अब तक मिला है चाहे मैने उसे पाने के लिए कितने ही पापड़ बेले हों अब मेरे जीवन में उसकी अहमियत कुछ खास नहीं रही है। मेरे मन में तो अब मेला लगता है मेरे अगले टारगेट का।मैं सोचती हूं मुझे संतुष्टि क्यों नहीं मिल पा रही है अपने से नाराज हो जाती हूं फिर मैं खुद को यह बोल कर तसल्ली देती हूं कि अगर आगे का नहीं सोचूगीं तो आगे बढ़ुगी कैसे। क्या मैं सारी जिन्दगी एक अनुवादक बन के ही बैठी रहुंगी या क्या मेरा एक मकान चाहे वो एक कमरे का ही क्यों न हो नहीं बन सकता। हर सुबह सोचती हूं कि आज तो कुछ ऐसा हो जाए कि मेरी मंजिल की तरफ कुछ कदम और आगे बढ़े पर रात के आते-आते मेरे सारी ख्याली पुलाव का रायता बन जाता है। मैं अपने कल की फिक्र में अपने आज का आनन्द ही उठा नहीं पा रही। मैं अपने मन से कई सवाल पूछ रही हूं ।मुझे तो कोई जवाब नहीं मिल रहा है।आपके पास हैं क्या---- तो कृपया बताइये और अगर आपकी भी यही सोच है तो फिर हाथ मिलाईये---------मीनाक्षी भसीन  29-05-14
 
हम
तकदीर का लिखा हुआ मिटा पाते क्यों नहीं हम
जख्मों को देने वाले को भुला पाते क्यों नहीं हम

बड़ा सा पलंग है, खिली-खिली सी चादर है
कमरे में ए सी है, स्वच्छता का भी आदर है
थके तो बहुत हैं फिर सो क्यों नहीं पाते हम

पैसों की बारिश है, दरवाजे पर गाड़ी है
मॉलों की रोज सैर है, कपड़ों के ढेर हैं
इतने खजानों पर भी मुस्कुरा क्यों नहीं पाते हम

मेक्डोनल, पिजा हट की बेशुमार दुकाने हैं
मोती महल, सागर रत्ना की तो अपनी शाने हैं
भर तो गए पेट, जी भर क्यों नहीं पाते हम

चाह है उस दूर की, भाग रहे सब भाग रहे
न मिला सकून दिल को, शरीर के भी कई कष्ट सहे
तकलीफ इतनी है तो फिर ठहर क्यों नहीं जाते हम-------



------------मीनाक्षी भसीन
29-05-14© सर्वाधिकार सुरक्षित



Tuesday 27 May 2014

हे प्रभु, प्यारे प्रभु

ईश्वर ने हमें रात का अनमोल उपहार दिया है ।रात का मतलब होता है कि हम आराम करें और हमारी सारी थकावट उतर जाए। मीठी सी नींद आए, नई कल्पनाओं का उदय हो और हम तैयार हो जाए एक नई सुबह के लिए एक नई ताजगी लिए बिल्कुल फ्रेश होकर । पर क्या सचमुच ऐसा होता है आपके साथ? क्या आप सुबह अच्छा सा महसूस कर रहे होते हैं। या सुबह पूरी रात सोकर भर भी ऐसा महसूस हो रहा होता है जैसे हम सोए ही नहीं या जैसे अभी थोड़ी देर और सो जाएं। हमारा दिन के प्रति रिएक्शन कैसा होता है—हाय! एक और दिन, फिर वही मारा-मारी, वही भाग-दौड़।मैने आपको पहले भी बताया था कि मेरा ऑफिस का सफर इतना लंबा होता है कि मुझे ऐसा लगता है कि मैने आते-जाते जीवन की यात्रा ही कर ली है। सड़क पर पहले पैदल निकलो, फिर रिक्शे पर बैठो, फिर बस पकड़ो, फिर मैट्रो। अरे अभी खत्म नहीं हुआ-अब ग्रामीण सेवा या इलैक्ट्रिकल रिक्शा पर बैठ जाओ। बस यही सफर मेरी प्रेरणा का स्रोत बन गया है। समझे नहीं आप ----------भई कितने ही अंगणित लोगों से भेंट करने का मौका मिल जाता है। चाय पीते हुए और अखबार पढ़ते हुए हमारा श्रामिक वर्ग, स्कूल या कॉलेज जाते हुए छात्र, गिरते पढ़ते बेबसी के चेहरे लिए मेरे जैसे ऑफिस जाते हुए लोग और मैट्रो की सीढ़ियों पर अपने आने वाले कल से बिल्कुल बेखबर रोमांस में डूबे हुए हमारे नौजवान, पार्क में बैठे हुए राजनीति पर चर्चा कर रहे हमारे बुजर्ग, बस में एक दूसरे को धक्का मारकर आगे निकल रहे लोग, और तो और खुद पर लाखों खर्च करने वाले दो,पांच रुपये के लिए रिक्शे वालों से लड़ते हुए लोग आदि आदि। अभी हाल ही मैने, सोने से पहले एक प्रार्थना का गुनगाण करना शुरु कर दिया है। मेरा मानना है जो फायदा हमें होता है अगर हम दूसरों के साथ बांटेगे तो हमारा मुनाफा डबल हो जाता है। भई! बहुत लालच है मेरे मन में। मैं आपके साथ अपनी खुशी बांट कर अपनी खुशी को दौगुना करना चाहती हूं। इस प्रार्थना को करने से आपको कोई मकान, गहने या नौकरी नहीं मिलेगी पर मेरा यकीन है कि नींद आपको बहुत अच्छी आएगी और सारी थकावट मिट जाएगी और आप एक अच्छे दिन की शुरुवात करेंगें----------------मीनाक्षी भसीन








हे प्रभु, प्यारे प्रभु आप अब आराम थोड़ा कीजिए,
अर्जियां तो दे रहे हम आपको,आप विश्राम थोड़ा कीजिए

कर्म सारे गलत कर, कल्पना करें सुनहरे भविष्य की
करते रहे सबसे कलेश फरियाद करें तुझसे शांति की
पूजनीय प्रभु, हमारे विचारों को शांति दीजिए

बटोर-बटोर के रखने की सोचें हर पल, बस पाते रहे नोटों के ढेर
जरुरतमंदों से तो अक्सर हम, लेते हैं अपनी आंखे फेर
हे दयालु प्रभु, हमारे मन में करुणा भर दीजिए

पत्थरों में ढूढतें तुझको ठूसते रहते इनमें अनाज
देख-देख कर बिलखते भूखों को पटरियों पर, आए न हमको कोई लाज
हे कृपालु प्रभु हमें सदबुद्धि का ताज दीजिए

कितनी भी पढें चालीसाएं, कितनी बजाए घंटियां, कितने भी पढ़े ले हम मंत्र
पढ़े को जीवन में लाया ही नहीं,तुझको याद में लाया नहीं
क्यों करते हैं खुद से ही षडयंत्र
हे दयानिधि प्रभु हमारे आत्मा का किवाड़ खोल दीजिए

------------मीनाक्षी भसीन


Monday 26 May 2014

सरकारी कर्मचारी की पहचान



मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहीं हूं पर कई बार मेरे साथ ऐसा हुआ कि बस में या कहीं सफर करते हुए जब कभी कभी बातों-बातों में किसी को मैने यह बताया कि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं तो वे हैरान हो गए । मैने पूछा- इसमें हैरान होने वाली कौन सी बात है तो उन्होंने कहा कि सरकारी लोग तो शक्ल से ही सरकारी लगते हैं। चेहरे से ही ऐसे हाव-भाव होते है कि बस उन्हें देख कर ही ऐसा लगता है कि ऑफिस में सोने के लिए जा रहे हैं। खास तौर पर हमारा युवा वर्ग सरकारी लोगों की तो हमेशा खिल्ली ही उड़ा रहा होता है। लड़कियों को भी अक्सर यह कहकर नौकरी के लिए प्रेरित किया जाता है कि भई या तो टीचर बन जाओ या सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करो। सरकारी नौकरी लग गई तो बस आराम ही आराम है। लेकिन सब सरकारी लोग एक जैसे नहीं होते। मैने कई लोग देखे हैं जो बहुत मेहनत से काम करते हैं। निजी कंपनियों में भी कई लोग आलस और चापलूसी का सहारा लेते हुए पाए जाते हैं। बात सरकारी या गैर सरकारी की नहीं है । तो मनुष्य प्रकृति की है इसमें विविधा तो सभी जगह विद्यमान है। यही सोचते हुए मैने यह लिख डाला--------


बुझा हुआ चेहरा, निराश ऑंखे, यही तो सरकारी कर्मचारी की पहचान है
टेबल पर लगा कर फाइलों का ढेर चाय की चुस्कियां भरना, यही तो इनकी शान है

मेहनतकश को शिकार बनाते अपने काम से जी चुराते
लुक बीजी डू नथिग का मोटो ही तो इनकी जान है


मुझसे पूछो कितने धक्के खाए, क्वालीफाइड होकर भी मैने कितने ऑसू बहाए
कई संघर्षों के बाद मिल ही गया मुझे सरकारी कर्मचारी का तमगा
सचमुच! मेरा ईश्वर महान है

जागो, उठो, बढ़ो कर्मचारी मेहनत ही डालेगी रंग और खुशबु तुम्हारे पैसे में
आलस से जब लगने लगे का जंग तुम्हारे विचारों में
कैसे खरीदोगे फिर तन-मन पैसे में
ईमानदारी, मेहनत को बना लो आदत अपनी
फिर देखो कितना सुंदर यह जहान है!


मीनाक्षी भसीन                26-05-14© सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday 21 May 2014

हे मन



घर हो या आफिस या वैसे भी हम बाहर हों तो कितना मजा आता है न दूसरों  की गलतियों के बारे में बात करना या चर्चा करना या उसे हाईलाईट करना। लेकिन जब कोई हमारे काम में कोई गलती निकाले तो जैसे हमारे मन में गुस्से का संचार हो जाता है। भई  मेरे साथ आज कुछ ऐसा ही हुआ। जब मेरे काम की सब तारीफ करते हैं, मेरी लेखनी की प्रंशसा करते हैं तब तो मैं सातवें आसमान में पहुंच जाती हूं। पर आज मेरे टाईप किए गए एक पत्र में मेरी ही एक गलती पर किसी ने मुझे यह सुनाया कि हिंदी से जुड़े हुए लोगों का जब यह हाल है तो हमारा क्या होगा तो जैसे मेरे विचारों में किसी ने आग ही लगा दी हो।बहुत गुस्सा आया, बहुत कोसा मैने उस शख्स को फिर मैं अपने कार्य में वयस्त हो गई । अब मेरे दिमाग में आया कि आखिर गलती तो मेरी ही थी फिर मैने अपने मन से यह सवाल पूछे------ यही सोचते ही मैने उससे माफी मांग ली।


हे मन


क्यों हमें अच्छा लगे दूजे को नीचा दिखाना
क्यों हमें अच्छा लगे खुद की हर बात पे इतराना

सुन तो पाते नहीं हम तुम्हारी कोई तीखी बात
पर छोड़ न पाएं तुम्हें धकेलने का कोई मौका, आए जो मेरे हाथ
क्यों हमें अच्छा लगे कामों के अपने झंडा फहराना

खुद की गलतियों पर भी चाहते हैं हो न किसी को खबर
करे दूसरा कोई चूक तो बन जाते हैं सबका गाडफादर
क्यों हमें अच्छा लगे गासिपस का हमें खजाना

मैं भी पूछती रहती हूं सबसे है कोई ताजा खबर
गोते लगाने का  अपना ही मजा है यह कैसी भवर
उर्म सारी बिता दी हमने सीखने में खुद को युं ही झुठलाना

मीनाक्षी भसीन
21-05-14 © सर्वाधिकार सुरक्षित