Saturday 26 April 2014

april 2014


    जब से सुना है मैं लिखती हूं अच्छा
    हर पल अब सुनाने की रहे मुझको इच्छा
    सोच बनती न किताबों से न ज्ञान के भंडारों से ये तो सीख लेती है अनुभव के नजारो से अब तो ी-वी न रेडियो में आए मुझको मजा
    ढूढती हूं वो अवसर जब जमाने हो जाए आभास
    अपनी लेखनी से बढ़ा दूंगी विचारों की प्यास
    सुनने वालों की कमी तो बन गई एक सजा

    मुझे अपनी पहचान को निकालना है ऑफिस व घर से
    जोड़ना है दिल की धड़कनों को जनता के दिलों से चढ़ गया कुछ कर दिखाने का मुझ पर अब नशा


    मीनाक्षी भसीन

    © सर्वाधिकार सुरक्षित

No comments: