जब से सुना है मैं लिखती हूं अच्छा
हर पल अब सुनाने की रहे मुझको इच्छा
सोच बनती न किताबों से न ज्ञान के भंडारों से ये तो सीख लेती है अनुभव के नजारो से अब तो टी-वी न रेडियो में आए मुझको मजाहर पल अब सुनाने की रहे मुझको इच्छा
ढूढती हूं वो अवसर जब जमाने हो जाए आभास
अपनी लेखनी से बढ़ा दूंगी विचारों की प्यास
सुनने वालों की कमी तो बन गई एक सजा
मुझे अपनी पहचान को निकालना है ऑफिस व घर से जोड़ना है दिल की धड़कनों को जनता के दिलों से चढ़ गया कुछ कर दिखाने का मुझ पर अब नशा
मीनाक्षी भसीन
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