Monday, 28 April 2014

सीख बच्चों से



सीख बच्चों से

एक रात मन में भरी थी टेंशन
भागी हुई थी नींद
विचारों का चल रहा था मेला
गुस्सा भी बन बैठा ढीठ

उठ कर बैठ के देखा मेरे सो रहे थे लाल
उनके चेहरे,मेरे चेहरे में फर्क था बड़ा कमाल
तभी कलम चली मीनाक्षी की
लिख डाला यही धमाल

क्यों बच्चे लगते हैं सुंदर
बिन मेकअप बिन चमचम के
लीपा-थोपी कर लें हम जितनी
लगते फिर भी हम बेरंग से
किंडर जवाए झूलों से ही
स्वर्ग की खुशी पाए बच्चे
हम चाहे महल, करोड़ कमा ले
रह न पाए खुद से सच्चे


जितना मर्जी लड़े, ये आपस में
पल में हंसने गाने लगते
हम तो नेगेटिव बातों से ही
अपने मन को भरते जाते
न द्वेष, न जलन इनके दिल में
न कोई है कम्पीटीशन
जीवन की छोटी-छोटी बातों में भी
ढूंढ लेते है ये फन

हम क्यों आखिर बड़े हो जाते
हम क्यों बच्चों जैसे नहीं बन जाते
हम क्या सिखाएगें इनको
इनसे सीखो सीख
कॉपी कर लो इनकी बातें
तो नहीं मांगोंगे खुशियों की भीख
इनकी प्यारी मासूमियम को  निहार निहार कर
अब सोनू की मैं करु तैयारी
अगर आप भी सहमत हैं इससे, तो मेहनत मेरी बेकार न जाए सारी----------------------मीनाक्षी 25-04-14
© सर्वाधिकार सुरक्षित

No comments: