घर
हो या आफिस या वैसे भी हम बाहर हों तो कितना मजा आता है न दूसरों की गलतियों के बारे में बात करना या चर्चा करना
या उसे हाईलाईट करना। लेकिन जब कोई हमारे काम में कोई गलती निकाले तो जैसे हमारे
मन में गुस्से का संचार हो जाता है। भई
मेरे साथ आज कुछ ऐसा ही हुआ। जब मेरे काम की सब तारीफ करते हैं, मेरी लेखनी
की प्रंशसा करते हैं तब तो मैं सातवें आसमान में पहुंच जाती हूं। पर आज मेरे टाईप
किए गए एक पत्र में मेरी ही एक गलती पर किसी ने मुझे यह सुनाया कि हिंदी से जुड़े
हुए लोगों का जब यह हाल है तो हमारा क्या होगा तो जैसे मेरे विचारों में किसी ने
आग ही लगा दी हो।बहुत गुस्सा आया, बहुत कोसा मैने उस शख्स को फिर मैं अपने कार्य
में वयस्त हो गई । अब मेरे दिमाग में आया कि आखिर गलती तो मेरी ही थी फिर मैने
अपने मन से यह सवाल पूछे------ यही सोचते ही मैने उससे माफी मांग ली।
हे
मन
क्यों
हमें अच्छा लगे दूजे को नीचा दिखाना
क्यों
हमें अच्छा लगे खुद की हर बात पे इतराना
सुन
तो पाते नहीं हम तुम्हारी कोई तीखी बात
पर
छोड़ न पाएं तुम्हें धकेलने का कोई मौका, आए जो मेरे हाथ
क्यों
हमें अच्छा लगे कामों के अपने झंडा फहराना
खुद
की गलतियों पर भी चाहते हैं हो न किसी को खबर
करे
दूसरा कोई चूक तो बन जाते हैं सबका गाडफादर
क्यों
हमें अच्छा लगे गासिपस का हमें खजाना
मैं
भी पूछती रहती हूं सबसे है कोई ताजा खबर
गोते
लगाने का अपना ही मजा है यह कैसी भवर
उर्म
सारी बिता दी हमने सीखने में खुद को युं ही झुठलाना
मीनाक्षी
भसीन
21-05-14
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