Tuesday 27 May 2014

हे प्रभु, प्यारे प्रभु

ईश्वर ने हमें रात का अनमोल उपहार दिया है ।रात का मतलब होता है कि हम आराम करें और हमारी सारी थकावट उतर जाए। मीठी सी नींद आए, नई कल्पनाओं का उदय हो और हम तैयार हो जाए एक नई सुबह के लिए एक नई ताजगी लिए बिल्कुल फ्रेश होकर । पर क्या सचमुच ऐसा होता है आपके साथ? क्या आप सुबह अच्छा सा महसूस कर रहे होते हैं। या सुबह पूरी रात सोकर भर भी ऐसा महसूस हो रहा होता है जैसे हम सोए ही नहीं या जैसे अभी थोड़ी देर और सो जाएं। हमारा दिन के प्रति रिएक्शन कैसा होता है—हाय! एक और दिन, फिर वही मारा-मारी, वही भाग-दौड़।मैने आपको पहले भी बताया था कि मेरा ऑफिस का सफर इतना लंबा होता है कि मुझे ऐसा लगता है कि मैने आते-जाते जीवन की यात्रा ही कर ली है। सड़क पर पहले पैदल निकलो, फिर रिक्शे पर बैठो, फिर बस पकड़ो, फिर मैट्रो। अरे अभी खत्म नहीं हुआ-अब ग्रामीण सेवा या इलैक्ट्रिकल रिक्शा पर बैठ जाओ। बस यही सफर मेरी प्रेरणा का स्रोत बन गया है। समझे नहीं आप ----------भई कितने ही अंगणित लोगों से भेंट करने का मौका मिल जाता है। चाय पीते हुए और अखबार पढ़ते हुए हमारा श्रामिक वर्ग, स्कूल या कॉलेज जाते हुए छात्र, गिरते पढ़ते बेबसी के चेहरे लिए मेरे जैसे ऑफिस जाते हुए लोग और मैट्रो की सीढ़ियों पर अपने आने वाले कल से बिल्कुल बेखबर रोमांस में डूबे हुए हमारे नौजवान, पार्क में बैठे हुए राजनीति पर चर्चा कर रहे हमारे बुजर्ग, बस में एक दूसरे को धक्का मारकर आगे निकल रहे लोग, और तो और खुद पर लाखों खर्च करने वाले दो,पांच रुपये के लिए रिक्शे वालों से लड़ते हुए लोग आदि आदि। अभी हाल ही मैने, सोने से पहले एक प्रार्थना का गुनगाण करना शुरु कर दिया है। मेरा मानना है जो फायदा हमें होता है अगर हम दूसरों के साथ बांटेगे तो हमारा मुनाफा डबल हो जाता है। भई! बहुत लालच है मेरे मन में। मैं आपके साथ अपनी खुशी बांट कर अपनी खुशी को दौगुना करना चाहती हूं। इस प्रार्थना को करने से आपको कोई मकान, गहने या नौकरी नहीं मिलेगी पर मेरा यकीन है कि नींद आपको बहुत अच्छी आएगी और सारी थकावट मिट जाएगी और आप एक अच्छे दिन की शुरुवात करेंगें----------------मीनाक्षी भसीन








हे प्रभु, प्यारे प्रभु आप अब आराम थोड़ा कीजिए,
अर्जियां तो दे रहे हम आपको,आप विश्राम थोड़ा कीजिए

कर्म सारे गलत कर, कल्पना करें सुनहरे भविष्य की
करते रहे सबसे कलेश फरियाद करें तुझसे शांति की
पूजनीय प्रभु, हमारे विचारों को शांति दीजिए

बटोर-बटोर के रखने की सोचें हर पल, बस पाते रहे नोटों के ढेर
जरुरतमंदों से तो अक्सर हम, लेते हैं अपनी आंखे फेर
हे दयालु प्रभु, हमारे मन में करुणा भर दीजिए

पत्थरों में ढूढतें तुझको ठूसते रहते इनमें अनाज
देख-देख कर बिलखते भूखों को पटरियों पर, आए न हमको कोई लाज
हे कृपालु प्रभु हमें सदबुद्धि का ताज दीजिए

कितनी भी पढें चालीसाएं, कितनी बजाए घंटियां, कितने भी पढ़े ले हम मंत्र
पढ़े को जीवन में लाया ही नहीं,तुझको याद में लाया नहीं
क्यों करते हैं खुद से ही षडयंत्र
हे दयानिधि प्रभु हमारे आत्मा का किवाड़ खोल दीजिए

------------मीनाक्षी भसीन


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