मेरा मन बावला
न जाने मेरा मन बावला
आखिर क्या चाहे
वो भी पा लूं ये भी पा लूं
हर पल मुझे सताए
परी थी मॉं
की तब चाहत थी पढ़ु
लिखु बहुत मैं
अव्वल आउ हर
कक्षा में नाम कमाउं बहुत मैं
रात दिन मैने एक कर दिए
मेहनत के पंख लगाए
हुई युवा तो सोचा अब अच्छी
नौकरी मुझे मिल जाए
बनु आत्मनिर्भर अब मैं बिना कोई
समय गवाए
हर पल लगता था इश्तिहारों
का मेला
बैचेनी की लहर
का डोला तन मन में
मेरे मेला
जुनून थ हर
पल कैसे नौकरी अच्छी पा जाउ मैं
इसी कशमकश में मां ने हमसफर
की बात चलाई
मैने भी मन
में अपने इसकी खिचड़ी पकाई
दो नौकों में होकर सवार चल तो पड़ी
अब सोचू मंजिल कैसे पाउं मैं
नेक दिल से बंधा मेरा जीवन पर मेहनत न छोड़ी मैने
एक मंजिल को पार कर लिया फूल भी खिल गए बगिया
में
कशमकश अब भी
है जीवन में इससे निजात कैसे पाउं मैं
इतना सब कुछ
पा लिया मैने फिर भी संतोष न कर
पाई मैं
सपना लेती हूं घर का अपने
परमोशन की राह भी तकती
मैं
हर पल कुछ पाने के लालच से खुद
बचा न पाई मैं
बहुत हो गया
सोचे मीनाक्षी आज मैट्रो में बैठे बैठे
उर्म गवा दी मैने अपनी सपनों को पूरा करते करते
इतना सब कुछ
पाकर भी मानव पाने की रखे इच्छा
देने की भी
आदत बना ले तो जीवन
कुछ हो जाए अच्छा
खुदा की खिदमद
भी तो आज तलक न कर पाई मैं
मीनाक्षी भसीन------------------6-05-14
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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