Tuesday 6 May 2014

मेरा मन बावला



मेरा मन बावला

जाने मेरा मन बावला आखिर क्या चाहे
वो भी पा लूं ये भी पा लूं हर पल मुझे सताए

परी थी मॉं की तब चाहत थी पढ़ु लिखु बहुत मैं
अव्वल आउ हर कक्षा में नाम कमाउं बहुत मैं
रात दिन मैने एक कर दिए मेहनत के पंख लगाए

हुई युवा तो सोचा अब अच्छी नौकरी मुझे मिल जाए
बनु आत्मनिर्भर अब मैं  बिना कोई समय गवाए
हर पल लगता था इश्तिहारों का मेला
बैचेनी की लहर का डोला तन मन में मेरे मेला
जुनून हर पल कैसे नौकरी अच्छी पा जाउ मैं

इसी कशमकश में मां ने हमसफर की बात चलाई
मैने भी मन में अपने इसकी खिचड़ी पकाई
दो नौकों में होकर सवार चल तो पड़ी
अब सोचू मंजिल कैसे पाउं मैं

नेक दिल से बंधा मेरा जीवन पर मेहनत छोड़ी मैने
एक मंजिल को पार कर लिया फूल भी खिल गए बगिया में
कशमकश अब भी है जीवन में इससे निजात कैसे पाउं मैं

इतना सब कुछ पा लिया मैने  फिर भी संतोष कर पाई मैं
सपना लेती हूं घर का अपने परमोशन की राह भी तकती मैं
हर पल कुछ पाने के लालच से खुद बचा पाई मैं

बहुत हो गया सोचे मीनाक्षी आज मैट्रो में बैठे बैठे
उर्म गवा दी मैने अपनी सपनों को पूरा करते करते
इतना सब कुछ पाकर भी मानव पाने की रखे इच्छा
देने की भी आदत बना ले तो जीवन कुछ हो जाए अच्छा
खुदा की खिदमद भी तो आज तलक कर पाई मैं

 मीनाक्षी भसीन------------------6-05-14
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